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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन

 

क्रौष्टुकिने पूछा-ब्रह्मन्! द्वीप, समुद्र, पर्वत और वर्ष कितने हैं तथा उनमें कौन-कौन-सी नदियाँ हैं ? महाभूत (पृथ्वी) और लोकालोकका प्रमाण क्या है? चन्द्रमा और सूर्यका व्यास, परिमाण तथा गति कितनी है? महामुने! ये सब बातें मुझे विस्तारपूर्वक बतलाइये।

मार्कण्डेयजी बोले-ब्रह्मन्! समूची पृथ्वीका विस्तार पचास करोड़ योजन है। अब उसके सब स्थानोंका वर्णन करता हूँ, सुनो। महाभाग! जम्बूद्वीपसे लेकर पुष्करद्वीपतक जितने द्वीपोंकी मैंने चर्चा की है, उन सबका विस्तार इस प्रकार है। क्रमशः एक द्वीपसे दूसरा द्वीप दुगुना बड़ा है; इसी क्रमसे जम्बूद्वीप, प्लक्ष, शाल्मल, कुश, क्रौञ्च, शाक और पुष्करद्वीप स्थित हैं। ये क्रमश: लवण, इक्षु, सुरा, घृत, दही, दूध और जलके समुद्रोंसे घिरे हुए हैं। ये समुद्र भी एककी अपेक्षा दूसरे दुगुने बड़े हैं।

अब मैं जम्बूद्वीपकी स्थितिका वर्णन करता हूँ। इसकी लंबाई-चौड़ाई एक लाख योजनकी है। इसमें हिमवान्, हेमकूट, निषध, मेरु, नील, श्वेत तथा श्रृङ्गी-ये सात वर्षपर्वत हैं। इनमें मेरु तो सबके बीच में है, उसके सिवा जो नील और निषध नामक दो और मध्यवर्ती पर्वत हैं, वे एक-एक लाख योजनतक फैले हुए हैं। निषधसे दक्षिणमें तथा नीलसे उत्तरमें जो दो-दो पर्वत हैं, उनका विस्तार क्रमश: दस-दस हजार योजन कम है। अर्थात् हेमकूट और श्वेत नब्बे-नब्बे हजार योजनतक तथा हिमवान् और श्रृङ्गी अस्सी-अस्सी हजार योजनतक फैले हुए हैं। वे सभी दो-दो हजार योजन ऊँचे और उतने ही चौड़े हैं। इस जम्बूद्वीपके छ: वर्षपर्वत समुद्रके भीतरतक प्रवेश किये हुए हैं। यह पृथ्वी दक्षिण और उत्तरमें नीची और बीचमें ऊँची तथा चौड़ी है। जम्बूद्वीपके तीन खण्ड दक्षिणमें हैं और तीन खण्ड उत्तरमें।

इनके मध्यभागमें इलावृत वर्ष है, जो आधे चन्द्रमाके आकारमें स्थित है। उसके पूर्वमें भद्राश्व और पश्चिममें केतुमाल वर्ष है। इलावृत वर्षके मध्यभागमें सुवर्णमय मेरुपर्वत है, जिसकी ऊँचाई चौरासी हजार योजन है। वह सोलह हजार योजन नीचेतक पृथ्वीमें समाया हुआ है तथा उसकी चौड़ाई भी सोलह हजार योजन ही है। वह शराव (पुरवे)-की आकृतिका होनेके कारण चोटीकी ओर बत्तीस हजार योजन चौड़ा है। मेरुपर्वतका रंग पूर्वकी ओर सफेद, दक्षिणकी ओर पीला, पश्चिमकी ओर काला और उत्तरकी ओर लाल है। यह रंग क्रमश: ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र तथा क्षत्रियका है। मेरुपर्वतके ऊपर क्रमशः पूर्व आदि दिशाओंमें इन्द्रादि आठ लोकपालोंके निवासस्थान हैं। इनके बीचमें ब्रह्माजीकी सभा है। वह सभामण्डप चौदह हजार योजन ऊँचा है। उसके नीचे विष्कम्भ (आधार) रूपसे चार पर्वत हैं, जो दस-दस हजार योजन ऊँचे हैं। वे क्रमश: पूर्व आदि दिशाओंमें स्थित हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं-मन्दर, गन्धमादन, विपुल और सुपार्श्व। इन चारों पर्वतोंके ऊपर चार बड़े-बड़े वृक्ष हैं, जो ध्वजाकी भाँति उनकी शोभा बढ़ाते हैं। मन्दराचलपर कदम्ब, गन्धमादन पर्वतपर जम्बू, विपुलपर पीपल तथा सुपार्श्वके ऊपर बरगदका महान् वृक्ष है। इन पर्वतोंका विस्तार ग्यारह-ग्यारह सौ योजनका है। मेरुके पूर्वभागमें जठर और देवकूट पर्वत हैं, जो नील और निषध पर्वततक फैले हुए हैं। निषध और पारियात्र-ये दो पर्वत मेरुके पश्चिम भागमें स्थित हैं। पूर्ववाले पर्वतोंकी भाँति ये भी नीलगिरितक फैले हुए हैं। हिमवान् और कैलासपर्वत मेरुके दक्षिण भागमें स्थित हैं। ये पूर्वसे पश्चिमकी ओर फैलते हुए समुद्रके भीतरतक चले गये हैं। इसी प्रकार उसके उत्तर भागमें श्रृङ्गवान् और जारुधि नामक पर्वत हैं। ये भी दक्षिण भागवाले पर्वतोंकी भाँति समुद्रके भीतरतक फैले हुए हैं।

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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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